लेखिनी वार्षिक लेखन प्रतियोगिता# खत्म होते जंगल
मै बहुत ही छोटे शहर से हूं और मेरा विवाह भी एक छोटे से शहर मे हुआ था। यहां गांव जैसी हरियाली तो नही थी पर फिर भी थोड़ी थोड़ी दूरी पर जंगल जैसे पेड़ पौधे लगे मिल जाते थे।खासकर सड़क मार्ग के दोनों ओर । मुझे याद है एक बार मैं मेरे पति के साथ अपनी ननद के यहां जा रही थी।मेरी ननद गुरु ग्राम रहती है मुझे सफर मे बहुत वोमिट होती है मन सा खराब रहता है। मैं जब भी मायके जाती हूं अपना मुंह गाड़ी की खिड़की से बाहर निकाल लेती हूं तो सड़क के दोनों ओर जो जंगल जैसे पेड़ पौधे लगे होते है तो उसमे से जो ठंडी बयार आती है तो मन ठीक हो जाता है। मुझे तो वही आदत हम जैसे ही गुरु ग्राम के नजदीक पहूचे तो मेरा जी घबराने लगा।मैने जैसे ही खिड़की के कांच से मुह बाहर निकाला मुझे लगातार उल्टियां होने लगी मैने सोचा ये क्या हो रहा है मेरे साथ पर जब बाहर का नजारा देखा तो मुझे लगा जैसे यहां पेड़ पौधों के जंगल की जगह इमारतों के जंगल उग आये थे।ऐसे लग रहा था जैसे पहले सब जगह जंगल होते थे बीच बीच मे मकान या इमारतें बनी होती थी यहां उल्टा था ऐसे लग रहा था जैसे इमारतों के जंगल में कहीं कही पेड पौधे लगाए गये है जबरदस्ती।
मै मन मे सोच रही थी कि ये जो जंगल खत्म होते जा रहे है उन का कारण भी कही ना कही हम ही है। एक तो आबादी ही इतनी बढ गयी है कि हर इंसान को सिर छुपाने के लिए छत चाहिए अब छत बनाने के लिए जमीन चाहिए गी तो वो कहां से आयेगी उसके लिए जंगलों का बलिदान होगा।
दूसरा कारण अवैध खनन, पेड़ों का कटना।ये भी मुख्य कारण है खतम होते जंगलों का ।इस के लिए मुझे यह बात धुंधली सी याद है कि एक जगह एक इमारत बनाने के लिए पेड़ काटने कम्पनी के लोग पहुंचे तो गांव की औरते पेड़ों से चिपक कर खडी हो गयी । हां शायद उस का नाम चिपको आंदोलन था।
अब फिर भी कुछ सख्ती हो गयी है लोग पेड़ काटना छोड़ रहे है। मैंने कल ही एक विडियो देखा यूट्यूब पर कैसे एक इमारत के बीच मे पेड आ रहा था बहुत बड़ा।इमारत बनाने वाले ने इस तरह से उसे बनाया कि पेड़ को कोई नुक्सान नहीं हुआ और इमारत भी बन गयी।
आओ हम सब शपथ ले की आगे से पेड पौधों को कोई नुक्सान ना पहुंचाए और जो भी फल हम खाये जैसे आम ,आडू,बेर आदि के बीज कूड़ेदान में ना फेंक कर उन्हें इकठ्ठा कर ले ओर जब भी कही बाहर घूमने जाए तो अपने साथ ले ले ओर रास्ते में दोनों ओर बिखेरते जाए।उन मे से अगर कुछ बीज भी पनप कर पेड़ों पर का रुप ले लेगे तो हम धरती मां के सच्चे सपूत कहलाएं गे।
Satvinder Singh
19-Mar-2022 11:31 PM
बिल्कुल सही कहा आपने मैम जंगल तो वहीं हैं बस पेड़ों की जगह इमारतों ने ले ली है
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Monika garg
20-Mar-2022 08:01 AM
जी बिल्कुल, धन्यवाद
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Swati Sharma
09-Mar-2022 03:31 PM
शानदार प्रस्तुति
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Monika garg
09-Mar-2022 05:29 PM
धन्यवाद
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Astha Singhal
27-Feb-2022 07:02 AM
बढ़िया लेख 👍
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Monika garg
27-Feb-2022 09:42 AM
धन्यवाद
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